मन समर्पित तन समर्पित और यह जीवन समर्पित।
चाहता हूँ मातृ-भू- तुमको अभी कुछ और भी दूँ।।
माँ तुम्हारा ॠण बहुत हैं, मैं अंकिचन,
किन्तु इतना कर रहा फिर भी निवेदन।
थाल में लाऊँ सजा कर भाल जब,
स्वीकार कर लेना दयामय यह समर्पण।
गान अर्पित प्राण अर्पित रक्त का कण-कण समर्पित।
मांज दो तलवार को लाओ न देरी,
बाँध दो कस कर कमर पर ढाल मेरी।
भाल पर मल दो चरण की धूल थोड़ी।
शीश पर आशीष की छाया घनेरी।
स्वप्न अर्पित प्रश्न अर्पित, आयु का क्षण-क्षण समर्पित।।
तोड़ता हूँ मोह का बंधन क्षमा दो,
गाँव मेरा द्वार घर आंगन क्षमा दो,
आज सीधे हाथ में तलवार दे दों,
और बाँयें हाथ में ध्वज को थमा दो।
ये सुमन लो, ये चमन लो नीड़ का तृण-तृण समर्पित।।