स्मरे राष्ट्र सारा, भरे प्रेम से जो।
प्रभावी तुम्हारी तपो साधना,
अति व्याकुला बुद्धि से गाऊँ कैसे,
यशोगान की गौरवालापना?।।1।।
कभी वासना थी न लोकेषणा की,
जगाई कृति दीप्ति तेजस्वला,
सहस्ञों मनों में वही जागृता हो,
उठी हिन्दू स्वातंत्र्य की प्रज्ज्वल।।2।।
न हो देव! पीड़ा तुन्हें चिंतना से,
सुनोगे हमीं से यशोगर्जना,
बहे नेञ से भावना –नीर-धारा,
मदीया यही अश्रु-पुष्पार्चना।।3।।