कोटि-कोटि हिन्दू जन का, हम ज्वार उठा कर मानेंगे।
सौगन्ध राम की खाते हैं, हम मंदिर वहीं बनायेंगे।
जन-जन के मन में राम रमे, हर प्राण-प्राण में सीता हैं।
कंकर-कंकर शंकर इसका, हर श्वास-श्वास में गीता हैं।
जीवन की धड़कन रामायण, पग-पग पर बनी पुनीता हैं।
यदि राम नहीं है प्राणों में, तो प्राणों का घट रीता हैं।
नर-नाहर श्री पुरूषोत्तम का शुभ मंदिर वहीं बनायेंगे।।1।।
जो कीर्ति अपावन शासन की, वह नीति तोड़कर मानेंगे।
जो सत्ता मद में भरा हुआ, वह कुम्भ फोड़कर मानेंगे।
जो फैल रही हैं आँगन में, विष बेल कुचलकर मानेंगे।
जो स्वप्न देखते बाबर के, अरमान मिटा कर मानेंगे।
कितना पशुबल है दानव में हम उसे तौल कर मानेंगे।।2।।